नवम: पाठ
Chapter 9-पर्यावरणम्
पर्यावरण
Environment
प्रस्तुतोऽयं पाठ्यांशः “पर्यावरणम्” पर्यावरणविषयक: लघुनिबन्धोऽस्ति। अत्याधुनिकजीवनशैल्यां प्रदूषणं प्राणिनां पुरत: अभिशापरूपेण समायातम्। नदीनां वारि मलिनं सञ्जातम्। शनै: शनै: धरा निर्वनं जायमाना अस्ति। यन्त्रेभ्यो नि:सरितवायुना वातावरणं विषाक्तं रुजाकारकं च भवति। वृक्षाभावात् प्रदूषणकारणाच्च बहुूनां पशुपक्षिणां जीवनमेव सङ्कटापन्नं दृश्यते। वनस्पतीनाम् अभावदशायां न केवलं वन्यप्राणिनाम् अपितु अस्माकं समेषामेव जीवनं स्थातुं नैव शक्यते। पादपा: अस्मभ्यं न केवलं शुद्धवायुमेव यच्छन्ति अपितु ते अस्माकं कृते जीवने उपयोगाय पत्राणि पुष्पाणि फलानि काष्ठानि औषधीन् छायां च वितरन्ति। अस्माद् हेतो: अस्माकं कर्तव्यम् अस्ति यद् वयं वृक्षारोपणं तेषां संरक्षणम्, जलशुचिताकरणम्, ऊर्जायाः संरक्षणम्, उद्यान-तडागादीनाम् शुचितापूर्वकं पर्यावरणसंरक्षणार्थं प्रयत्नं कुर्याम। अनेनैव अस्माकं सर्वेषां जीवनम् अनामयं सुखावहञ्च भविष्यति ।
सरलार्थ: यह प्रस्तुत पाठ्यांश “पर्यावरण” पर्यावरण संबंधित लघु निबन्ध है। अत्याधुनिक जीवन शैली में प्रदूषण प्राणियों के सामने अभिशाप रूप में बढ़ा है। नदियों के जल मलिन (गन्दे) हो गए हैं। धीरे- धीरे धरती वन हीन हो रही है। कारखानों और गाड़ियों से निकलते धुएँ से वातावरण विषैली हो रही है। पेड़ कटने से प्रदूषण के कारण अनेक पशु-पक्षी के जीवन ही मुश्किलों से घिरे हुए देखे गए हैं। वनस्पतियों के अभाव के दशा में न केवल वन्य प्राणियों का अपितु हम सबका ही जीवन बना रहने के लिए बिलकुल (संभव) नहीं हो सकता है। पौधे हमारे लिए न केवल शुद्ध वायु ही देते हैं अपितु वे हमारे लिए जीवन में उपयोग के लिए पत्ते, फूल, फल, लकड़ी, औषधि को और छाया को देते हैं। उनके लिए हमारा कर्तव्य है कि उनके संरक्षण के लिए हमलोग वृक्षारोपण करेंगे, जल शुद्ध करने में, बिजली का संरक्षण, उद्यान- तालाब आदि को साफ़ करके पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयत्न करेंगे। इस प्रकार ही हम सभी का जीवन आनंदमय और सुखी होगा।
English Translation: This presented text “Environment” is a short essay related to the environment. In the modern lifestyle, pollution has increased in the form of a curse in front of living beings. The waters of the rivers have become dirty. Gradually the earth is becoming forestless. The atmosphere is getting toxic due to the smoke coming out of factories and vehicles. Due to pollution due to the cutting of trees, the lives of many animals and birds have been seen surrounded by difficulties. In the absence of vegetation, it may not be possible to survive not only wild animals but also of all of us. Plants not only give pure air for us, but they also give leaves, flowers, fruits, wood, medicine, and shade for us to use in life. It is our duty for them that for their protection, we will plant trees, purify water, conserve electricity, clean the gardens and ponds, etc., and try to protect the environment. In this way the life of all of us will be blissful and happy.
प्रकृति: समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, सुखसाधनैः च तर्पयति। पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाश: च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आव्रियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षित: तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिकं जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीज्च प्रददाति। प्रकृतिकोपैः आतदङ्कितो जन: किं कर्तुं प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रैः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्?
सरलार्थ: प्रकृति बराबर से प्राणियों की संरक्षण के लिए प्रयास करती है। यह सबका अनेक प्रकार से पोषण और सुख साधनों से संतुष्ट करती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इसके प्रमुख तत्त्व हैं। वो ही मिलकर या अलग से हमारा पर्यावरण रचते हैं। इनसे संसार चारों तरफ से हर जगह ढका हुआ है। जैसे अजन्मा शिशु माँ के पेट में सुरक्षित रहता है वैसे ही मानव पर्यावरण के गर्भ (पेट) में।स्वच्छ और प्रदूषणरहित पर्यावरण हमारे लिए सांसारिक जीवनसुख, सुंदर विचार, सत्यसङ्कल्प और माङ्गलिक सामग्री देती है। प्रकृति के गुस्से से आतंकित मानव क्या कर सकता है? बाढ़ से, अग्नि से, भूकम्प से, बवंडरों से और उल्कापात आदि से दुःखी मानव का कहाँ कल्याण?
English Translation: Nature makes equal efforts to protect animals. It provides nourishment and pleasure to everyone in a variety of ways. Earth, water, light, air, and sky are its primary elements. They, either together or separately, shape our environment. They surround the world on all sides. The unborn child is safe in the womb, and the human being is safe in the environment. A clean and pollution-free environment provides us with worldly life pleasures, lovely thoughts, true resolutions, and auspicious material. What can a man do when he is terrified of nature’s wrath? Where is the well-being of people affected by floods, fires, earthquakes, tornadoes, and meteors, among other disasters?
अत एव अस्माभिः प्रकृति: रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। तत्र विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति।
सरलार्थ: इसीलिए हमारे द्वारा प्रकृति रक्षा के योग्य है। और उससे पर्यावरण रक्षित होगा। प्राचीन समय में संसार- कल्याण को चाहने वाले ऋषि वन में रहते थे, क्योंकि जंगल में ही सुरक्षित पर्यावरण उपलब्ध था। वहाँ नाना प्रकार के पक्षी कानों को अच्छे लगने वाले कलरव देती हैं।
English Translation: That is why nature deserves to be protected by us. And it will save the environment. In ancient times, the sages who wanted worldly welfare lived in the forest, because a safe environment was available in the forest itself. There, different types of birds give pleasant tweets to the ears.
सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायुं वितरन्ति।
सरलार्थ: नदियाँ तथा पहाड़ के झरने अमृत जैसा स्वादिष्ट स्वच्छ जल देते हैं। पेड़ तथा लताएँ, फल-पुष्प और ईंधन की लकड़ी प्रचुरता से देते हैं। ठंडी, धीरे और सुगन्धित वन की हवाएं (तथा) औषधीय कल्प प्राणवायु बिखेरती है।
English Translation: Rivers and mountain springs provide clean water that tastes like nectar. Trees and vines provide an abundance of fruits, flowers, and fuel wood. The cool, gentle and fragrant forest winds and medicinal kalpas radiate vitality.
परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवा: व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति । तस्मात् अवृष्टि: प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृति: एव सर्वेषां विनाशकर्त्री भवति। विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधा: रोगाः भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति। तत्सर्वमिदानीं चिन्तनीयं प्रतिभाति।
सरलार्थ: लेकिन स्वार्थ में अंधा मानव वही पर्यावरण का आज नाश कर रहा है। अपने थोड़े से फायदे के लिए मनुष्य बहुमूल्य वस्तुओं का नाश कर रहे हैं। लोग कारखानों का विष भरा जल नदियों में गिराते हैं। जिसके द्वारा मछलियाँ आदि तथा जलचरों का क्षण-भर में ही नाश हो जाता है। नदी का जल भी सभी प्रकार से अपेय हो गया है। मानव व्यापार बढ़ाने के लिए जंगल के वृक्षों को बिना दिमाग से काटते हैं। जिससे सूखा बढ़ता है और जंगल के जानवर शरण रहित होकर गावों में उपद्रव करते हैं। शुद्ध वायु भी पेड़ काटने से सङ्कट युक्त हो गयी है। ऐसे ही स्वार्थ में अंधा मानव के द्वारा बीमार पर्यावरण ही सभी का विनाश करने वाली हो गयी है। बीमार पर्यावरण में अनेक बीमारियाँ और गंभीर समस्याएं पैदा होती हैं। वह सब अब चिन्तनीय लगता है।
English Translation: But a human blind in selfishness is destroying the same environment today. Human beings are destroying valuable things for their little benefit. People throw poisoned water from factories into rivers. By which fishes etc. and aquatics get destroyed in a moment. The water of the river has also become impenetrable in all respects. Humans mindlessly cut the trees of the forest to increase trade. Due to which the drought increases and the animals of the forest become shelterless and create nuisance in the villages. Even pure air has become troubled by cutting trees. In the same selfishness, the diseased environment by blind human beings has become the destroyer of all. Many diseases and serious problems arise in a sick environment. All of that sounds remarkable now.
धर्मो रक्षति रक्षित: इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्त:। अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम् । कुक्कुर-सूकर -सर्प – नकुलादि-स्थलचरा:, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यत: ते स्थलमलानाम् अपनोदिनः जलमलानाम् अपहारिणश्च। प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशय:।
सरलार्थ: संरक्षित धर्म रक्षा करता है ऐसा ऋषियों का वचन है। पर्यावरण का रक्षा भी धर्म का अंग है ऐसा ऋषियों ने बोला है। इस कारण से टैंक, कुआँ, तालाब आदि का निर्माण तथा मंदिर आराम घर आदि की स्थापना धर्मसिद्धि के उद्गम रूप में दयित्व लिया गया। कुत्ता, सूअर, साँप, नेवला आदि जमीन चरने वाले, मछली, कछुआ, घड़ियाल और जलचर भी रक्षा के योग्य हैं , क्योंकि वे भूमि की गंदगी तथा जल की गंदगी दूर करते हैं। प्रकृति की रक्षा के द्वारा ही लोकरक्षा सम्भव है (यहाँ) संशय (confusion) नहीं है।
English Translation: ‘Protected Dharma protects’, such is the word of the sages. ‘Protection of the environment is also a part of religion’, so the sages have said. For this reason, the construction of tanks, wells, ponds etc. and the establishment of temples, rest houses, etc., were taken as the origin of Dharmasiddhi. Dogs, pigs, snakes, mongoose, etc., grazers, fish, tortoises, alligators and aquatic are also worthy of protection because they remove the dirt of the land and the dirt of the water. Public protection is possible only through the protection of nature. There is no doubt here.
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I want yogyatavistarah page no. 84 slok in Hindi translation. It is From NCRT book chapter-11in Sanskrit.
Where is the Hindi translation of chapter 11 paryavarnam of class 9
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