निबंध से
प्रश्न 1. मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?
उत्तर- मोर की गर्दन नीली होने के कारण उसका नाम नीलकंठ रखा गया जबकि मोरनी सदैव छाया के तरह मोर के साथ-साथ रहती थी, इसी कारणवश उसका नाम राधा पड़ा।
प्रश्न 2. जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?
उत्तर- जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का इसप्रकार स्वगत किया गया जैसे नववधू के आगमन पर किया जाता है। सभी बहुत प्रसन्न थे। कबूतर नाचना छोड़कर दोनों के आगे पीछे घूमकर गुटरगूँ करने लगे। खरगोश शांति भाव से कतार में बैठकर उन्हें देखने लगे तथा छोटे खरगोश उनके आसपास उछल-कूद करने लगे। तोते ने भी एक आँख बंद कर चुपचाप उनको देखकर अपनी तरफ़ से निरीक्षण में लगे थे।
प्रश्न 3. लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
उत्तर- लेखिका को नीलकंठ की निम्नलिखित चेष्टाएँ बहुत भाती थीं-
(1) नीलकंठ जब वर्षा ऋतु के समय अपने इंद्रधनुष के गुच्छे के समान सुनहरे पखों को मंडलाकार बनाकर नाचता था और राधा उसका साथ देती थी । यह मनमोहक दृश्य को देखकर लेखिका मंत्रमुग्ध हो उठती थी।
(2) उसका गर्दन को टेढ़ी करके शब्द सुनना।
(3) नीलकंठ का दयालु स्वभाव।
(4) गर्दन ऊँची करके देखना, आदि लेखिका को बहुत प्रिये थी।
प्रश्न 4. इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा-वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर- इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा, यह वाक्य उस घटना की ओर संकेत कर रहा है जब लेखिका ने कुब्जा मोरनी को लाई थी। नीलकंठ, राधा व अन्य सभी पशु-पक्षी साथ मिलकर बड़े ही आनन्द से उस बाड़े में रहते थे। परन्तु कुब्जा मोरनी को उनके साथ रहना नहीं भाया उसने उन सब के आनन्द में भंग कर दिया था। उसके अंदर अत्यंत ईर्ष्या थी जिस वजह से वह किसी को नीलकंठ के पास नहीं जाने देती थी, यदि कोई आता था तो वह उसे अपनी चोंच से घायल करके भगा देती थी। उसने राधा के अंडों को भी तोड़-फोड़ कर दिया था। उसने नीलकंठ के शांतिपूर्ण जीवन में इतना कोलाहल मचाया जिस बाद नीलकंठ अकेला व खिन्न रहने लगा।
प्रश्न 5. वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
उत्तर- वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय हो जाता था क्योंकि उसका स्वभाव है बारिश में मनोहारी नृत्य करना। वर्षा ऋतु में जब चारों तरफ हरियाली छा जाती थी और मेघों के उमड़ आने से पूर्व ही इस बात की आहट हो जाती थी कि आज वर्षा अवश्य होगी तब वह उसका स्वागत करने के लिए अपने स्वर में मंद केका करने लगता और उसकी गूँज सारे वातावरण में फैल जाती थी। वह ऐसे वातावरण को देख कर जालीघर से निकलने के लिए छटपटा जाता था।
प्रश्न 6. जालीघर में रहनेवाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?
उत्तर- जालीघर में रहनेवाले सभी जीव-जंतु एक-दूसरे के मित्र बन गए, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव नहीं हो पाया, क्योंकि वह स्वभाव से ईर्ष्यालु था। उसके अंदर अत्यंत ईर्ष्या थी जिस वजह से वह किसी को नीलकंठ के पास नहीं जाने देती थी, यदि कोई आता था तो वह उसे अपनी चोंच से घायल करके भगा देती थी। उसने राधा के अंडों को भी तोड़-फोड़ कर दिया था। इसके कारण सब उससे दूर रहते थे यहाँ तक की नीलकंठ भी उससे डर के मारे भागने लगा था।
प्रश्न 7. नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
एक दिन जालीघर के अंदर सांप आ गया जिसे देख कर सभी जीव-जंतु भागकर इधर-उधर छिप गए, सिर्फ एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया। नन्हा खरगोश धीरे-धीरे चीं-चीं कर रहा था तब सोए हुए नीलकंठ ने दर्दभरी आवाज सुनी तो वह अपने पंख समेटता हुआ झूले से नीचे आ गया। उसने बहुत सतर्क होकर साँप के फन के पास पंजों से दबाया और फिर अपनी चोंच से उसपे इतने प्रहार किए कि वह अधमरा हो गया और फन की पकड़ ढीली होते ही खरगोश का बच्चा मुख से निकल आया। इस प्रकार नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से बचाया।
इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की निम्न विशेषताएँ उभर कर आती हैं- सतर्कता , वीरता, दयालु, रक्षक अथवा कुशल संरक्षक।
निबंध से आगे
प्रश्न 1. यह पाठ एक रेखाचित्र’ है। रेखाचित्र की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं? जानकारी प्राप्त कीजिए और लेखिका के लिखे किसी अन्य रेखाचित्र को पढ़िए।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2. वर्षा ऋतु में जब आकाश में बादल घिर आते हैं तब मोर पंख फैलाकर धीरे-धीरे मचलने लगता है यह मोहक दृश्य देखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 3. पुस्तकालयों से ऐसी कहानियों, कविताओं या गीतों को खोजकर पढ़िए जो वर्षा ऋतु और मोर के नाचने से संबंधित हों।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न 1. निबंध में आपने ये पंक्तियाँ पढ़ी हैं-मैं अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा के बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित प्रतिबिंबित होकर गंगा को चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा।’ -इन पंक्तियों में एक भावचित्र है। इसके आधार पर कल्पना कीजिए और लिखिए मोर पंख की चंद्रिका और गंगा की लहरों में क्या-क्या समानताएँ लेखिका ने देखी होगी जिसके कारण गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर पंख के समान तरंगित हो उठा।
उत्तर- जब नीलकंठ को गंगा के बीच धार में प्रवाहित किया गया, तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा। गंगा और यमुना के जल का मिलन प्रात:काल के सूर्य की किरणों से जब सतरंगी दिखाई देता है तो दूर-दूर तक किसी मोर के नृत्य का दृश्य प्रकट करता है जो अत्यंत मनमोहक होता है। गंगा की लहरों के हिलने-डुलने में मोर के पंखों की थिरकन का आभास होता है।
प्रश्न 2. नीलकंठ की नृत्य-भंगिमा का शब्दचित्र प्रस्तुत करें।
उत्तर- जब आसमान में काले-काले बदल घिर जाते है तब नीलकंठ के पाँव थिरकने लगते हैं। जैसे-जैसे वर्षा अपनी गति में तीव्र से तीव्रतर होती उसके पाँवों की शक्ति बढ़ती जाती और नृत्य तेजी से होने लगता जो अत्यंत मनोहारी दृश्य होता। नीलकंठ के पंख फैलाते ही ऐसा लगता है मानो इंद्रधनुष का दृश्य साकार हो उठा हो।
भाषा की बात
प्रश्न 1. ‘रूप’ शब्द से कुरूप, स्वरूप, बहुरूप आदि शब्द बनते हैं। इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों से अन्य शब्द बनाओ-
गंध रंग फल ज्ञान
उत्तर-
गंध – सुगंध, दुर्गंध।
रंग – रंगना, बेरंग।
फल – सफल, विफल।
ज्ञान – अज्ञान, विज्ञान।
प्रश्न 2. विस्मयाभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दों के योग से बना है। इसमें विस्मय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण है। ये सभी वर्ण ध्वनियों में व्याप्त हैं। व्यंजन वर्गों में इसके योग को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे क + अ = क इत्यादि। अ की मात्रा के चिह्न (।) से आप परिचित हैं। अ की भाँति किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से अकार की मात्रा ही लगती है, जैसे-मंडल + आकार = मंडलाकार। मंडल और आकार की संधि करने पर (जोड़ने पर) मंडलाकार शब्द बनता है और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर (तोड़ने पर) मंडल और आकार दोनों अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के संधि-विग्रह कीजिए
संधि
नील + आभ = ……
नव + आगंतुक = ……
विग्रह
सिंहासन = ………….
मेघाच्छन्न = ……………
उत्तर-
संधि
नील + आभ = नीलाभ
नव + आगंतुक = नवागंतुक
विग्रह
सिंहासन = सिंह + आसन
मेघाच्छन्न = मेघ + आच्छन्न
👍👍👍