चतुर्थ: पाठः
कल्पतरूः
कल्पवृक्ष
Tree of Heaven
प्रस्तुतोऽयं पाठ: “वेतालपञ्चविंशति:” इति प्रसिद्धकथासङ्ग्रहात् सम्पादनं कृत्वा संगृहीतोऽस्ति। अत्र मनोरञ्जकघटनाभिः विस्मयकारिघटनाभिश्च जीवनमूल्यानां निरूपणं वर्तते। अस्यां कथायां पूर्वकालत: एव स्वगृहोद्याने स्थितकल्पवृक्षेण जीमूतवाहन: लौकिकपदार्थान् न याचते। अपितु सः सांसारिकप्राणिनां दु:खानि अपाकरणाय वरं याचते। यतो हि लोकभोग्याः भौतिकपदार्था: जलतरङ्गवद् अनित्याः सन्ति। अस्मिन् संसारे केवलं परोपकारः चिरस्थायि तत्त्वम् अस्ति।
Hindi Translation
यह प्रस्तुत पाठ “वेतालपञ्चविंशति:” प्रसिद्ध कथा सङ्ग्रह से सम्पादन करके संगृहीत किया गया है। यहाँ मनोरञ्जक घटनाओं के द्वारा और विस्मयकारी घटनाओं के द्वारा जीवन के मूल्यों का वर्णन किया गया है। इस कथा में पहले के समय से ही अपने घर के बगीचे में स्थित कल्पवृक्ष के द्वारा जीमूतवाहन सांसारिक चीजों को नहीं माँगता है। अपितु वह सांसारिक प्राणियों के दुखों को दूर करने के लिए वरदान माँगता है। क्यूँकि संसार के भोग भौतिक पदार्थ जल के तरंग के तरह अस्थायी (पतनशील) हैं। इस संसार में केवल परोपकार (ही) चिरस्थायी (अमर) तत्त्व है।
English Translation
This text is an excerpt from the famous story collection “Vetalpanchavinshati:”. The values of life are described here through amusing and awe-inspiring events. In this story, Jimutvahana does not ask for worldly things from the ‘Kalpavriksha,’ which is located in his house’s garden from earlier times. Rather, he requests a boon to alleviate the suffering of worldly beings because the material things of the world are transient (degradable) like a wave of water. Benevolence is the only everlasting (immortal) element in this world.
अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्र:। तस्य सानो: उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम् तत्र जीमूतकेतु: इति श्रीमान् विद्याधरपति: वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरु: स्थित:। स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्। स : जीमूतवाहनः महान् दानवीर: सर्वभूतानुकर्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्न: स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्। कदाचित् हितैषिणः पितृमन्त्रिणः यौवराज्ये स्थितं तं जीमूतवाहनं उक्तवन्तः- “युवराज! योऽयं सर्वकामद: कल्पतरु: तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्य:। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति।
Hindi Translation
भूमि पर सर्वरत्न के जैसा हिमालय नाम का पर्वतराज है। उसके शिखर के ऊपर कञ्चनपुर नाम का नगर मंडित है, वहाँ ‘जीमूतकेतु’ श्रीमान् विद्याधरपति रहते थे। उनके घर के बाग में कुल क्रम से आया हुआ कल्पतरु (एक पेड़) स्थित था। वह राजा जीमूतकेतु उस कल्पतरु को आराधना करके और उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से पैदा हुए जीमूतवाहन नाम के पुत्र को प्राप्त किया। वह जीमूतवाहन बड़ा दानवीर और सभी जीवों पर दया करने वाला हुआ। उसके गुणों से खुश होकर अपने मंत्रियों से प्रेरित राजा ने समय के साथ प्राप्त जवानी में उसको (जीमूतवाहन को) युवराज अभिषिक्त किया। संभव है, हित चाहने वाले पिता और मंत्रियो के द्वारा उस जीमूतवाहन को कहा गया “युवराज! जो यह सभी इक्षाओं को पूरा करने वाला कल्पतरु तुम्हारे उद्यान में खड़ा है, वह तुम्हारे द्वारा सदा पूजनीय है। इसके अनुकूल रहने पर इन्द्र (देवताओं का राजा) भी हमलोगों को बाधित नही कर सकता।
English Translation
On earth, like all gems, there is a mountain named Himalaya. Kanchanpur is a city located above its peak. Sriman Vidyadharapati, also known as ‘Jemutketu,’ lived there. In his home garden, a Kalpataru from the order of clans was located. That king Jemutketu worshiped that Kalpataru and by his grace received a son named Jemutavahana born of a part of the Bodhisattva. He became a great giver and kind to all beings. The king, inspired by his ministers, anointed the Jeemutavahana to the crown prince in his youth over time, pleased with his qualities. It is possible, through well-wisher father and ministers, that Jeemutavahan was told – “Yuvraj! Kalpataru (heaven tree), the one who satisfies all desires, stands in your garden and is forever revered by you.” Being friendly to Kalpataru, Indra (King of the Gods) also cannot hinder us.
एतत् आकर्ण्य जीमूतवाहन: अचिन्तयत् पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थ: अर्थित :। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि ” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत्- “तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरम् इदं सर्व धनं वीचिवत् चञ्चलम्। एक: परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वर: यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तद् अस्माभि: ईदृशः कल्पतरु: किमर्थं रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं ‘मम मम’ इति आग्रहेण रक्षित:, ते इदानीं कुत्र गता:? तेषां कस्यायम्? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमं कल्पपादपम् आराधयामि।
Hindi Translation
यह सुनकर जीमूतवाहन ने सोचा- “हमारे पुरुषों (पूर्वजों) के द्वारा वैसा फल कोई भी नहीं प्राप्त किया। किन्तु केवल कुछ ही निर्धनों के द्वारा कोई भी धन माँगा गया। तब मैं इससे कल्पतरू से अभीष्ट मांग सधता हूँ”। ऐसा सोचकर वह पिता के नजदीक गया। और आराम से बैठे हुए पिता को एकान्त में बोला – “पापा! आप तो जानते ही हो कि इस संसार रूपी सागर में शरीर , यह सब धन लहरों के जैसा चञ्चल है। एक परोपकार ही इस संसार में अनश्वर है जो युगों-युगों तक यश फैलता है। तब हमारे द्वारा ऐसा कल्पतरु किसलिए संरक्षण के योग्य है? और जो (हमारे) पूर्वजों के द्वारा यह ‘मेरा-मेरा’ अनुरोध के द्वारा संरक्षित है, वे लोग अब कहाँ गए? उनका किसका है? इसका या कौन वे लोग? इसलिए परोपकार एक फल की सिद्धि के लिए आपकी आज्ञा से इस कल्प वृक्ष की आराधना करता हूँ।
English Translation
Hearing this, Jeemutavahan thought- “No such result was achieved by our ancestors. However, money was sought by only a few poor people. Then, I make the desired demand from this Kalpataru (heaven-tree) “. Thinking this, he went close to the father and said to the father sitting comfortably in solitude. “Papa! You know that the body and all this wealth in the world are like waves.” A benevolence is immortal in this world, which spreads fame for ages. Then why is such a Kalpataru worthy of protection? The ancestors who have been protected by this ‘mine’ request, where did that ancestor go now? Whose is this? His/her or who those people?? That is why I will worship this Kalpataru (heaven-tree) tree with your permission for the accomplishment of benevolence.
अथ पित्रा ‘तथा’ इति अभ्यनुज्ञात: स जीमूतवाहन: कल्पतरुम् उपगम्य उवाच – “देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टा: कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय । यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि, तथा करोतु देव” इति। एवंवादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्।
Hindi Translation
फिर पिता से ‘वैसा ‘ आज्ञा लेकर वह जीमूतवाहन कल्पतरू के पास आकर बोला -“देव! आपसे हमारे पूर्वजों की अभीष्ट मनोकामनाएं पूरी की गयी, तो मेरी (भी) एक कामना पूरी कीजिए। जैसे पृथ्वी को गरीबों के बिना देखता हूँ, वैसा (ही) कीजिए देव”। जीमूतवाहन के द्वारा ऐसा बोलने पर “तुम्हारे द्वारा त्याग किया गया मैं जाता हूँ”। इस तरह (उस) पेड़ से वाणी निकली।
English Translation
Then, Jeemutavahan taking the same command from his father, came to Kalpataru (tree of heaven) and said – “Dev! You have fulfilled the desires of our ancestors, so please also fulfill my one wish. Just like I see the earth without the poor, do it, God! “I go after you have been forsaken” by the Jeemutvahan. When Jeemutavahan said this, the heaven tree replied, “I’m leaving because you’ve abandoned me.”
क्षणेन च स कल्पतरु: दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यश: प्रथितम्।
Hindi Translation
और तुरन्त से वह कल्पतरु स्वर्ग में उछलकर पृथ्वी पर ऐसा धन बरसाया जिससे कोई भी गरीब नहीं रहा। तब उस जीमूतवाहन का सब जीवों की अनुकम्पा से सभी जगह यश फ़ैल गया।
English Translation
And immediately, heaven tree leaped into heaven and threw such money on the earth that no one was poor. The glory of that Jeemutavahan then spread throughout the universe as a result of the kindness of all living beings.
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