वर्ण:
वर्ण: वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं। इन्हें अक्षर भी कहते हैं। जैसे – अ, ई, क्, ख् आदि।
वर्ण के भेद
वर्णों को मुख्यत: तीन भेद हैं – स्वर, व्यञ्जन और अयोगवाह।
स्वर – 11
व्यञ्जन – 39 (33 मूल व्यंजन) + (2 द्विगुण व्यंजन ) + (4 संयुक्त व्यंजन)
अयोगवाह -2
अत: हिंदी में वर्णों की कुल संख्या – 52 (11+39+2) है।
स्वर
स्वर – ऐसे वर्ण जो बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से उच्चारण किये जा सकें, वे स्वर कहलाते हैं। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, ए, ऐ, ओ और औ। – 13
Note: भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानक हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर होते हैं – अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ। हिन्दी भाषा में ऋ को आधा स्वर(अर्धस्वर) माना जाता है, अतः इसे स्वर में शामिल किया गया है। हिन्दी भाषा में प्रायः ॠ और ऌ का प्रयोग नहीं होता है। ॠ और ऌ प्रयोग प्रायः संस्कृत भाषा में होता है, इसलिए हम अभी संस्कृत की दृष्टि से 13 स्वर मान कर चल रहे हैं।
स्वर के भी तीन भेद हैं – ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत।
ह्रस्व – वैसे स्वर जिनके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगे। अ, इ, उ, ऋ, लृ। – 5
दीर्घ – वैसे स्वर जिनके उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगे। आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ। – 8
प्लुत – वैसे स्वर जिनके उच्चारण में तीन मात्राओं का समय लगे। जैसे – ॐ = अ + ओ + म् ।
व्यञ्जन
व्यञ्जन – ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से हो, व्यञ्जन कहलाते हैं। जैसे क्, ख्, इत्यादि। मुख्य रूप से व्यञ्जन के तीन भेद हैं – स्पर्श, अन्त: स्थ, ऊष्म। इसके अतिरिक्त व्यञ्जन के दो और भी भेद होते हैं। – द्विगुण / उत्क्षिप्त व्यंजन तथा संयुक्त व्यंजन ।
क् ख् ग् घ् ङ्
च् छ् ज् झ् ञ्
ट् ठ् ड् ढ् ण्
त् थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्
य् र् ल् व्
श् ष् स् ह् – 33
क्ष त्र ज्ञ श्र – 4
ड़, ढ़ – 2
नोट 1: वैसे तो व्यंजनों की संख्या 33 ही होती है। लेकिन 2 द्विगुण व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन मिलाने के बाद व्यंजनों की संख्या 39 हो जाती है। लेकिन भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानक हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या 35 है।(33 मूल व्यंजन तथा 2 द्विगुण व्यंजन (ड़, ढ़)। संयुक्त व्यंजन को नहीं नहीं जोड़ा गया है।
नोट 2: क, ख, …. में ‘अ’ स्वर मिला हुआ है (उच्चारण में सहायता हेतु )। लेकिन मूलत: क् ख् ग् … इत्यादि ही व्यञ्जन हैं।
स्पर्श व्यञ्जन– ऐसे व्यञ्जन जिनका उच्चारण करने हेतु मुख के किन्हीं दो भागों का स्पर्श करके, वायु-प्रवाह पूरी तरह से रोका जाए। जैसे ‘ब’ और ‘प’ में होंठ जोड़कर।
क् ख् ग् घ् ङ् – क वर्ग- (कंठ)
च् छ् ज् झ् ञ् – च वर्ग- (तालु)
ट् ठ् ड् ढ् ण् – ट वर्ग- (मूर्धा)
त् थ् द् ध् न् – त वर्ग- (दांत)
प् फ् ब् भ् म् – प वर्ग- (होंठ)
अन्त: स्थ व्यञ्जन – य् र् ल् व् (अन्त:करण से उच्चारित होने वाले व्यञ्जन)।
ऊष्म व्यञ्जन – श् ष् स् ह् (ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय आवाज मुँह से टकरा कर ऊष्मा) पैदा करे तथा उच्चारण करते समय सांस लेने की प्रबलता हो)।
संयुक्त व्यंजन- दो व्यंजनों के योग से बने हुए व्यंजनों को ‘संयुक्त-व्यंजन’ कहते हैं।
क् + ष् + अ = क्ष
त् + र् + अ = त्र
ज् + ञ् + अ = ज्ञ
श् + र् + अ = श्र
द्विगुण व्यंजन/ उत्क्षिप्त व्यंजन– (हिन्दी में) जिनके उच्चारण में जीभ उपर उठकर मूर्धा को स्पर्श करके तुरंत नीचे आ जाए, द्विगुण व्यंजन कहलाते हैं।यह दो होते हैं- ड़, ढ़ ।
अयोगवाह
अयोगवाह – ऐसे वर्ण जो न स्वर हो न ही व्यञ्जन उन्हें अयोगवाह कहते हैं। ये स्वरों के साथ मिलकर, स्वरों के अंत में बोले जाते हैं। इनका उच्चारण अकेले हो ही नहीं सकता। ये हैं – अनुस्वार – ( ं ) , विसर्ग – ( : )
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