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Sanskrit Grammar Class 6 – वर्ण एवं उसके भेद

वर्ण:

वर्ण: वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं। इन्हें अक्षर भी कहते हैं। जैसे – अ, ई, क्, ख् आदि।

वर्ण के भेद

वर्णों को मुख्यत: तीन भेद हैं – स्वर, व्यञ्जन और अयोगवाह

स्वर – 11
व्यञ्जन – 39 (33 मूल व्यंजन) + (2 द्विगुण व्यंजन ) + (4 संयुक्त व्यंजन)
अयोगवाह -2

अत: हिंदी में वर्णों की कुल संख्या – 52 (11+39+2) है।

स्वर

स्वरऐसे वर्ण जो बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से उच्चारण किये जा सकें, वे स्वर कहलाते हैं। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, ए, ऐ, ओ और औ। – 13

Note: भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानक हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर होते हैं – अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ। हिन्दी भाषा में ऋ को आधा स्वर(अर्धस्वर) माना जाता है, अतः इसे स्वर में शामिल किया गया है। हिन्दी भाषा में प्रायः ॠ और ऌ का प्रयोग नहीं होता है। ॠ और ऌ प्रयोग प्रायः संस्कृत भाषा में होता है, इसलिए हम अभी संस्कृत की दृष्टि से 13 स्वर मान कर चल रहे हैं।

स्वर के भी तीन भेद हैं – ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत

ह्रस्ववैसे स्वर जिनके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगे। अ, इ, उ, ऋ, लृ। – 5

दीर्घ वैसे स्वर जिनके उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगे। आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ। – 8

प्लुत – वैसे स्वर जिनके उच्चारण में तीन मात्राओं का समय लगे। जैसे – ॐ = अ + ओ + म्

व्यञ्जन

व्यञ्जन – ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से हो, व्यञ्जन कहलाते हैं जैसे क्, ख्, इत्यादि। मुख्य रूप से व्यञ्जन के तीन भेद हैं – स्पर्श, अन्त: स्थ, ऊष्म इसके अतिरिक्त व्यञ्जन के दो और भी भेद होते हैं। – द्विगुण / उत्क्षिप्त व्यंजन तथा संयुक्त व्यंजन

क् ख् ग् घ् ङ्
च् छ् ज् झ् ञ्
ट् ठ् ड् ढ् ण्
त् थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्
य् र् ल् व्
श् ष् स् ह् – 33

क्ष त्र ज्ञ श्र – 4

ड़, ढ़ – 2

नोट 1: वैसे तो व्यंजनों की संख्या 33 ही होती है। लेकिन 2 द्विगुण व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन मिलाने के बाद व्यंजनों की संख्या 39 हो जाती है। लेकिन भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानक हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या 35 है।(33 मूल व्यंजन तथा 2 द्विगुण व्यंजन (ड़, ढ़)। संयुक्त व्यंजन को नहीं नहीं जोड़ा गया है।

नोट 2: क, ख, …. में ‘अ’ स्वर मिला हुआ है (उच्चारण में सहायता हेतु )। लेकिन मूलत: क् ख् ग् … इत्यादि ही व्यञ्जन हैं।

स्पर्श व्यञ्जन ऐसे व्यञ्जन जिनका उच्चारण करने हेतु मुख के किन्हीं दो भागों का स्पर्श करके, वायु-प्रवाह पूरी तरह से रोका जाए। जैसे ‘ब’ और ‘प’ में होंठ जोड़कर।

क् ख् ग् घ् ङ् – क वर्ग- (कंठ)
च् छ् ज् झ् ञ् –
च वर्ग- (तालु)
ट् ठ् ड् ढ् ण् –
ट वर्ग- (मूर्धा)
त् थ् द् ध् न् –
त वर्ग- (दांत)
प् फ् ब् भ् म्
– प वर्ग- (होंठ)

अन्त: स्थ व्यञ्जन य् र् ल् व् (अन्त:करण से उच्चारित होने वाले व्यञ्जन)।

ऊष्म व्यञ्जन श् ष् स् ह् (ऐसे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय आवाज मुँह से टकरा कर ऊष्मा) पैदा करे तथा उच्चारण करते समय सांस लेने की प्रबलता हो)

संयुक्त व्यंजन- दो व्यंजनों के योग से बने हुए व्यंजनों को ‘संयुक्त-व्यंजन’ कहते हैं।
क् + ष् + अ = क्ष
त् + र् + अ = त्र
ज् + ञ् + अ = ज्ञ
श् + र् + अ = श्र

द्विगुण व्यंजन/ उत्क्षिप्त व्यंजन (हिन्दी में) जिनके उच्चारण में जीभ उपर उठकर मूर्धा को स्पर्श करके तुरंत नीचे आ जाए, द्विगुण व्यंजन कहलाते हैं।यह दो होते हैं- ड़, ढ़ ।

अयोगवाह

अयोगवाहऐसे वर्ण जो न स्वर हो न ही व्यञ्जन उन्हें अयोगवाह कहते हैं ये स्वरों के साथ मिलकर, स्वरों के अंत में बोले जाते हैं इनका उच्चारण अकेले हो ही नहीं सकता ये हैं – अनुस्वार – ( ं ) , विसर्ग – ( : )

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7 thoughts on “Sanskrit Grammar Class 6 – वर्ण एवं उसके भेद”

  1. Please help me to learn Sanskrit in easy way mujhe Sanskrit mea khuch bhi nahi aata h mujhe toh bas name hi pata h

    Reply
    • Hi,

      You said, “you don’t know anything in Sanskrit.”
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