धातु
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। धातु तीन प्रकार के होते हैं- परस्मैपदी, आत्मनेपदी और उभयपदी। परस्मैपदी, आत्मनेपदी और उभयपदी – हमने इन तीनों के बारे में कक्षा 8 में ही विस्तारपूर्वक पढ़ लिया है। ये मैंने आपकी जानकारी के लिए बताया है।
धातु (क्रिया) के भेद (कर्म की दृष्टि से)
कर्म की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं –
अकर्मक क्रिया
- अकर्मक क्रिया – ‘अकर्मक’ मतलब कर्म उपस्थित नहीं है। जब भी किसी वाक्य में कर्ता हो और क्रिया भी हो लेकिन कर्म ना हो तो उस जगह पर अकर्मक क्रिया प्रयोग में आती है। जैसे –हँसना, रोना, मरना, जीना, चलना, दौड़ना, होना, खेलना, बैठना, मरना, घटना, जागना, उछलना, कूदना, तैरना, आदि।
सकर्मक क्रिया
- सकर्मक क्रिया – जब किसी वाक्य में कर्ता, क्रिया और कर्म तीनों उपस्थित हों, तो वहां सकर्मक क्रिया होती है। पढ़ना, लाना, सुनना, पीना, प्राप्त करना, देना इत्यादि।
कर्मवाच्य में सकर्मक क्रिया प्रयोग होते हैं। कर्मवाच्य के लिए धातु के साथ ‘य’ तथा आत्मनेपद के प्रत्यय लगाते हैं। मतलब ‘य’ जोड़कर आत्मनेपदी का धातु -रूप जैसे चला दो। Don’t take tension, we will see examples.
भाववाच्य में अकर्मक क्रिया प्रयोग होते हैं तथा उनमें भी धातु के साथ ‘य’ तथा आत्मनेपद के प्रत्यय लगाते हैं। मतलब ‘य’ जोड़कर आत्मनेपदी का धातु -रूप जैसे चला दो। Don’t take tension, we will see examples too.
जानकारी के लिए बताते चलूँ, कर्तृवाच्य में सकर्मक तथा अकर्मक दोनों क्रियाएँ उपयोग हो सकती हैं।
धातुओं के मुख्यत: रूप चलते हैं – पाँच लकार और तीन वचन में।
1. लट् लकार (वर्तमान काल/ Present Tense)
2. लृट् लकार (भविष्य काल/Future Tense)
3. लङ् लकार (भूत काल/Past Tense)
4. लोट् लकार (अनुज्ञा/आदेश) (permission/order)
5. विधिलिङ्लकारः (विधिः/सम्भावना) Method/ possibility
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कर्मवाच्य के अनुसार कुछ प्रमुख धातु-रूप (सकर्मक क्रिया)
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ये सभी धातु-रूप, धातु के साथ य तथा आत्मनेपद के प्रत्यय मिलने से बनते हैं – मतलब धातु में ‘य’ जोड़कर आत्मनेपदी का धातु -रूप जैसे चला दो। इसी पेज के सबसे अंतिम में हम कुछ और नियम भी पढ़ेंगे जिसकी मदद से कर्मवाच्य या भाववाच्य में धातु-रूप बनते हैं।
पठ् (पढ़ना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | पठ्यते | पठ्येते | पठ्यन्ते |
मध्यमपुरुषः | पठ्यसे | पठ्येथे | पठ्यध्वे |
उत्तमपुरुषः | पठ्ये | पठ्यावहे | पठ्यामहे |
नी (ले जाना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | नीयते | नीयेते | नीयन्ते |
मध्यमपुरुषः | नीयसे | नीयेथे | नीयध्वे |
उत्तमपुरुषः | नीये | नीयावहे | नीयामहे |
श्रु (सुनना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | श्रूयते | श्रूयेते | श्रूयन्ते |
मध्यमपुरुषः | श्रूयसे | श्रूयेथे | श्रूयध्वे |
उत्तमपुरुषः | श्रूये | श्रूयावहे | श्रूयामहे |
पा (पीना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | पीयते | पीयेते | पीयन्ते |
मध्यमपुरुषः | पीयसे | पीयेथे | पीयध्वे |
उत्तमपुरुषः | पीये | पीयावहे | पीयामहे |
लभ् (प्राप्त करना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | लभ्यते | लभ्येते | लभ्यन्ते |
मध्यमपुरुषः | लभ्यसे | लभ्येथे | लभ्यध्वे |
उत्तमपुरुषः | लभ्ये | लभ्यावहे | लभ्यामहे |
दा (देना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | दीयते | दीयेते | दीयन्ते |
मध्यमपुरुषः | दीयसे | दीयेथे | दीयध्वे |
उत्तमपुरुषः | दीये | दीयावहे | दीयामहे |
कृ (करना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | क्रियते | क्रियेते | क्रियन्ते |
मध्यमपुरुषः | क्रियसे | क्रियेथे | क्रियध्वे |
उत्तमपुरुषः | क्रिये | क्रियावहे | क्रियामहे |
भाववाच्य के अनुसार कुछ प्रमुख धातु-रूप (अकर्मक क्रिया)👇👇👇
अस् (होना) / भू (होना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | भूयते | भूयेते | भूयन्ते |
मध्यमपुरुषः | भूयसे | भूयेथे | भूयध्वे |
उत्तमपुरुषः | भूये | भूयावहे | भूयामहे |
हस् (हसना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | हस्यते | हस्येते | हस्यन्ते |
मध्यमपुरुषः | हस्यसे | हस्येथे | हस्यध्वे |
उत्तमपुरुषः | हस्ये | हस्यावहे | हस्यामहे |
जीव् (जीना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | जीव्यते | जीव्येते | जीव्यन्ते |
मध्यमपुरुषः | जीव्यसे | जीव्येथे | जीव्यध्वे |
उत्तमपुरुषः | जीव्ये | जीव्यावहे | जीव्यामहे |
क्रीड् (खेलना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | क्रीड्यते | क्रीड्येते | क्रीड्यन्ते |
मध्यमपुरुषः | क्रीड्यसे | क्रीड्येथे | क्रीड्यध्वे |
उत्तमपुरुषः | क्रीड्ये | क्रीड्यावहे | क्रीड्यामहे |
आस् (बैठना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | आस्यते | आस्येते | आस्यन्ते |
मध्यमपुरुषः | आस्यसे | आस्येथे | आस्यध्वे |
उत्तमपुरुषः | आस्ये | आस्यावहे | आस्यामहे |
स्था [तिष्ठ] (ठहरना)
लट्लकारः (वर्तमानकालः)
पुरुषः | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्रथमपुरुषः | स्थीयते | स्थीयेते | स्थीयन्ते |
मध्यमपुरुषः | स्थीयसे | स्थीयेथे | स्थीयध्वे |
उत्तमपुरुषः | स्थीये | स्थीयावहे | स्थीयामहे |
कर्मवाच्य या भाववाच्य में धातु-रूप बनाने के नियम –
1. जिन धातुओं के अंत में दीर्घ ‘आ’ होता है, जैसे – दा, धा, पा, स्था, आदि धातुओं के अंतिम स्वर के स्थान पर दीर्घ ई हो जाता है। जैसे – दीयते, धीयते, पीयते, स्थीयते, इत्यादि।
2. ऋकारान्त धातुओं (मृ, कृ, भृ, धृ, वृ, इत्यादि) के अंतिम ऋकार को ‘य’ परे होने पर ‘रि’ हो जाता है। जैसे – म्रियते, क्रियते, भ्रियते, ध्रियते, वियते, इत्यादि।
3. जिन धातुओं के अंत में ‘इ’ तथा ‘उ’ होते हैं, ‘य’ परे होने पर उनके स्थान पर दीर्घ ई तथा ऊ हो जाता है। जैसे -जि से जीयते, स्तु से स्तूयते, श्रु से श्रूयते, इत्यादि।
4. र् को ऋ; जैसे – प्रच्छ् – पृच्छ्यते, ग्रह – गृह्यते; आदि धातु रूप बनते हैं।
5. व को उ सम्प्रसारण: जैसे – वद् – उद्यते, वच् – उच्यते, वस् – उष्यते, स्वप् – सुप्यते; आदि।
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कृपया इन वाच्यों के बदलाव के कुछ उदाहरण दें।
धन्यवाद 🙏